Thursday, September 17, 2009


सपने में रंग गई कान्हा के रंग''
सपने में रंग गई कान्हा के रंगतन में तरंग उठें, उर में उमंग सखिसपने में रंग गई कान्हा के रंग सखीनयनों की वर्षा से भीगी मैं सारीनेह पिचकारी कान्हा बार-बार मारीतन के तार झनझनाएँ, नाचे अंग-अंग सखिसपने में रंग गई कान्हा के रंग सखीफागुन के गुन बतलाऊँ कैसे मैं आलीअँखियों मे रंग नया, अधरों पे लालीबिन छुए गुलाल लाल, गाल गए रंग सखिसपने में रंग गई कान्हा के रंग सखीऐसा है रंग सखि धोऊँ न छूटेरातें सुहानी लगें दिन भी अनूठेबौराए मन मोरा बिना पिए ही भंग सखिसपने में रंग गई कान्हा के रंग सखी..

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