प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है,मार्ग वह हमें दिखाती है।प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।नदी कहती है' बहो, बहोजहाँ हो, पड़े न वहाँ रहो।जहाँ गंतव्य, वहाँ जाओ,पूर्णता जीवन की पाओ।विश्व गति ही तो जीवन है,अगति तो मृत्यु कहाती है।प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।शैल कहतें है, शिखर बनो,उठो ऊँचे, तुम खूब तनो।ठोस आधार तुम्हारा हो,विशिष्टिकरण सहारा हो।रहो तुम सदा उर्ध्वगामी,उर्ध्वता पूर्ण बनाती है।प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।वृक्ष कहते हैं खूब फलो,दान के पथ पर सदा चलो।सभी को दो शीतल छाया,पुण्य है सदा काम आया।विनय से सिद्धि सुशोभित है,अकड़ किसकी टिक पाती है।प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।
Saturday, September 19, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment