Thursday, September 17, 2009


रश्मि पत्रों पर शपथ ले मैं यही कह रही हूँ''
रश्मि पत्रों पर शपथ ले मैं यही कह रही हूँचाहते हो लो परीक्षा मैं स्वयं इम्तहान हूँहूँ पवन का मस्त झोंकापर तुम्हें ना भूल पाईइसलिए यह भोर संध्यागीत बनकर मुझको गाईकंटको की राह पर चलती रही हैरान हूँक्यों मचलती हूँ समंदर के लिए हैरान हूँशून्य में कुछ खोजती हूँपर मिलन का विश्वास हैइस शहर में है सभी कुछमन में मेरे सन्यास हैआँसुओं का कोष संचित है बड़ी धनवान हूँपर नदी के साथ बहकर तृप्ति से अनजान हूँतुम रहो बादल घनेरे मैं तो सरस बरसात हूँदेख पाती जल सतह नाहँसती हुई जलजात हूँतुम भले समझो न समझो आज तक मैं मौन हूँकल चिरंतन प्रश्न का उत्तर यही पहचान हूँ...

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