कल्पना''
देखा है मैंनेखुले आकाश के,बाँह पसारेविस्तार को।नदिया के रुख कोमचलते खेलतेबहने को।हर उषा सेआशआ की किरण कोमहसूस किया है।अपने बंद आँखों से,देख सह चुप रह करजिया है मैंने''हर दिनहर पल कों;और सराहा है उसेजिसने मुझे यह सबदेखने दीया!!!चाहे मन की आंखों के पीछे से ही...
देखा है मैंनेखुले आकाश के,बाँह पसारेविस्तार को।नदिया के रुख कोमचलते खेलतेबहने को।हर उषा सेआशआ की किरण कोमहसूस किया है।अपने बंद आँखों से,देख सह चुप रह करजिया है मैंने''हर दिनहर पल कों;और सराहा है उसेजिसने मुझे यह सबदेखने दीया!!!चाहे मन की आंखों के पीछे से ही...
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