Thursday, September 17, 2009


समुद्र की लहरेंकितने जोश मेंकितने वेग सेचली आतीं हैंइतराती, मंडरातीकिनारे की ओर।और रह जातीं हैंअपना सर फोड़करकिनारे की चट्टानों पर।लहर ख़त्म हो जाती हैरह जाता है-पानी का बुलबुलाथोड़ा-सा झाग।लहरें निराश नहीं होतींहार नहीं मानतीं।चली आती हैंबार-बार, निरंतर, लगातारएक के पीछे एक।एक दिन सफल होती हैंतोड़कर रख देती हैंभारी भरकम चट्टान कोपर फिर भी शांत नहीं होतींआराम नहीं करतीं।इनका क्रम चलाता रहता है।चट्टान के छोटे-छोटे टुकड़े कर चूर कर देतीं हैं-उनका हौसला, उनके निशान।बना कर रख देतीं हैंरेतएक बारीक महीन रेतसमुद्र तट पर फैलीएक बारीक महीन रेत।

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