Saturday, September 19, 2009


वेदों के मंत्र हैं
हम न मौसमी बादलहम न घटा बरसातीपानी की हम नहीं लकीर,वेदों के मंत्र हैं, ऋचाएँ हैं।
हवा हैं गगन हैं हम,क्षिति हैं, जल,अग्नि हैं दिशाओं में,हम तो बस हम ही हैं,हमको मत ढूँढ़ो उपमाओं में,शिलालेख लिखते हम,हम नहीं लकीर के फकीरजीवन के भाष्य हैं, कथाएँ हैं।
वाणी के वरद-पुत्र,वागर्थी अभियोजक हैं अनन्य,प्रस्थापित प्रांजल प्रतिमाएँ हैं,शिव हैं कल्याणमयी,विधि के वरदान घन्य,विष्णु की विराट भंगिमाएँ हैं,खुशियों के मेले हमयायावर घूमते फकीरआदमक़द विश्व की व्यथाएँ हैं।

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