Thursday, September 17, 2009


दीप सी मैं''
धूप सा तन दीप सी मैं! उड़ रहा नित एक सौरभ-धूम-लेखा में बिखर तन,खो रहा निज को अथक आलोक-साँसों में पिघल मनअश्रु से गीला सृजन-पल,औ' विसर्जन पुलक-उज्ज्वल,आ रही अविराम मिट मिटस्वजन ओर समीप सी मैं!सघन घन का चल तुरंगम चक्र झंझा के बनाये,रश्मि विद्युत ले प्रलय-रथ पर भले तुम श्रांत आये,पंथ में मृदु स्वेद-कण चुन,छाँह से भर प्राण उन्मन,तम-जलधि में नेह का मोतीरचूँगी सीप सी मैं!धूप-सा तन दीप सी मैं!

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