Thursday, September 17, 2009


मृदंगों का नाद''
उस स्वप्न की ओरजहाँ शीतल जल के दर्पण मेंमेघों का आलिंगन होबहती धारा की कल-कल ध्वनि मेंमाधुर्यता का पदार्पण होप्रकृति के प्रेम रस मेंसुधा संगीत का गूँज होवायु का लतिका पर स्पर्शमृदुल झंकार कर रहा होघटाओं का यों आना भीसहस्त्रों मृदंगों का नाद करेआकाश की बूँद गिर करअमृत को भी गौण कर देऐसे वातावरण में मेरा विरागचित्त चकोर को ढूँढेंमुझे ऐ मेरे मन तू ले चलउस स्वप्न की ओर।

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